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________________ INI कल्पसूत्रे सशन्दार्थे ॥७३०॥ महिमा देवेहि, कया] दूसरे दिन कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को देवों ने गौतमस्वामी के गौतम- : Tamil स्वामिनः केवलज्ञान की महिमा की [तेणं तं दिवसं नूयणवरिसारंभदिवसत्तणेण पसिद्धं , जायं] विलापः इस कारण वह दिन नूतन वर्षारंभ का दिन प्रसिद्ध हुआ [भगवओ जेट भाऊणा, नंदि- केवलज्ञान प्राप्तिश्च वद्धणेण भगवं मोक्खगयं सोच्चा सोगसागरे निमज्जिएण चउत्थं कयं] भगवान को मोक्ष गया सुनकर शोक सागर में डूबे हुए भगवान के ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन ने उपवास किया। सुदंसणाए भइणीए. तं आसासिय. नियगिहे आणाविय: चउत्थस्स पारणगं कारियं तेण सा कत्तियसुद्धविइया, भाउबीयत्ति पसिद्धिं पत्ता] सुदर्शना बहन ने उनको सान्त्वना देकर और अपने घर पर लाकर उपवास का पारणा करवाया। इस कारण | कार्तिक शुक्ला द्वितीया (भाइदूज) के नाम से प्रसिद्ध हुइ ॥४३॥... .... भावार्थ-तब गौतमस्वामी श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण हुआ सुनकर, . मानो वज्र से आहत हुए हों, इस प्रकार क्षणभर मौन रह कर सुन्न हो गये। तत्पश्चात् | ||७३०॥ HS.....
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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