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________________ कल्पसूत्रे दा ॥७२९ ॥ है [ हि ] कहा भी है- [ अहंकारो वि बोहस्स रागो वि गुरुभत्तिओ] आश्चर्य है कि गौतमस्वामी का अहंकार बोध प्राप्ति का कारण बन गया राग गुरुभक्ति का कारण बना [विसाओ केवलस्सासी चित्तं गोयमसामिणो] और शोक केवलज्ञान का कारण बन गया । [जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए ] जिस रात्रि में श्रमण भगवान् महावीर मोक्ष पधारे [सा रयणी देवेहिं उज्जोविया ] उस रात्रि में देवों ने खूब प्रकाश किया [भिसारयणी लोए दीवालियत्ति पसिद्धा जाया ] तभी से वह रात्रि लोक में दीपावली के नाम से प्रसिद्ध हुई । [ नवमल्लइ नवलेच्छइ कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो संसारपारकरं पोसहोववासदुगं करिंसु ] काशी देश के नौ मल्लकी और कोशल देश के नौ लेच्छकी इस प्रकार अठारहों गणराजाओं ने संसार से पार करनेवाले दो दो पौषधोपवास किये | [बीए दिवसे कत्तियसुद्वपडिवयाए गोयमसामिस्स केवल " गौतमस्वामिनः विलापः केवलज्ञान प्राप्तिश्च ॥७२९ ॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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