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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥७२१॥ 00: हुआ, देवों का संगम हुआ, देवों का कलकल नाद हुआ और देवों की बहुत बड़ी भीड भी हुई ॥४२॥ मूलम्-तए णं से गोयमसामी समणस्स भगवओ महावीरस्स निव्वाणं सुणिय वज्जाहर विवखणं मोणमोलंबिय थद्धो जाओ । तओ पच्छा मोहवसंगओ सो विलवइ - भो ! भो ! भदंत महावीर ! हा ! हा! वीर ! एयं किं कयं भगवया, जं चरणपज्जुवासगं मं दूरे पेसिय मोक्खं गए। किमहं तुम्हं हत्थेण गहियं अचिट्टिस्सं, किं देवाणुप्पियाणं निव्वाणविभागं अपत्थिस्सं, जेणं मं दूरे पेसीअ । जइ दीणसेवगं मं सरणं सद्धिं अनइस्सं तो किं मोक्खणयरं संकिण्णं अभविस्सं ? महापुरिसा उ सेवगं विणा खर्णपि न चिट्ठेति, भदंतेण सा नीइ कहं विसरिया । इमा पवित्ती विपरिया जाया । सह णयणं गौतमस्वामिनः विलापः केवलज्ञान प्राप्तिश्च ॥७२१ ॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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