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कल्परने सशन्दार्ये
भगवतो निर्वाणसमयचरित्रम्
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मुक्त हुए पुनरागमन रहित गति को प्राप्त हुए। जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त हुए, परमार्थ को साधकर सिद्ध हुए, तत्वार्थ को जानकर बुद्ध हुए और समस्त कर्मो के समूह से मुक्त हुए, उनके समस्त दुःख दूर हो गये। किसी भी प्रकार का संताप न रहने से परम शांति को-निर्वाण को प्राप्त हुए, और इस कारण समस्त शारीरिक और मानसिक दुःखों से रहित हो गये। उस काल और उस समय में अर्थात् भगवान् के निर्वाण के अवसर पर चन्द्र नामक द्वितीय संवत्सर था। प्रीतिवर्धन नामक मास, नन्दिवर्धक नामक पक्ष, उपशम जिस का दूसरा नाम है ऐसा अग्निवेश्य नामक दिवस था। देवा| नन्दा, जिसका दूसरा नाम निरति है, रात्रि थी। अर्ध नामक भव, मुहूर्त नामक प्राण, | सिद्ध नामक स्तोक, नाग नामक करण, सर्वार्थसिद्ध नामक मुहूर्त था और स्वाती नक्षत्र | के साथ चन्द्रमा का संबंध को प्राप्त था। जिस रात्रि में श्रमण भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ उस रात्रि में बहुत से देवों और देवियों के नीचे आने और ऊपर जाने से देवप्रकाश
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