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कल्पसूत्रे
सशब्दार्थे ॥७१९॥
भगवतो निर्वाणॐ सनय
चरित्रम्
समय विपाक सूत्र के प्रथम स्कन्ध नाम से प्रसिद्ध, पाप का फल विपाक दर्शानेवाले दस दुःख विपाक नामक अध्ययनों को तथा विपाकसूत्र के द्वितीय अध्ययन के नाम से प्रसिद्ध पुण्य का फल बतलानेवाले दस सुख विपाक नामक अध्ययनों को कह कर और उत्तराध्ययन के नाम से प्रसिद्ध छत्तीस अध्ययन रूप अपृष्ट व्याकरणों को अर्थात् पूछे विना ही किये गये व्याकरणों को कहकर और इस प्रकार सब छप्पन अध्ययन फरमाकर प्रधान नामक मरुदेव अध्ययन का प्ररूपण करते हुए अन्तर्मुहूर्त आयु शेष रहने पर भगवान् ने मन वचन एवं काय के योग का निरोध करने पर तीनों लोगो में प्रकाश हुवा । प्रभुने शैलेशी अवस्था प्राप्त की तव आठों कर्मों को खपाकर कर्म रजरहित-सब कर्मो से मुक्त होकर मोक्षगति को प्राप्त की सिद्धि गति को प्राप्त करके लोकके अग्रभाग पर स्थित रहते हुए शाश्वत-नित्यरूप से सिद्ध होकर रहते हैं। कालधर्म को प्राप्त हुए, अर्थात् कायस्थिति और भवस्थिति से
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