________________
कल्पसूत्र
सशब्दार्थ
॥७१४॥
वेदनीय आयुष्क नाम और गोत्र कर्म के क्षीण होने पर [इमीसे ओसप्पिणीए दूसमसुसमाए | भगवतो
निर्वाणसमाए बहुवीइकंताए तीहिं वासेहिं अद्धनवमेहिं य मासेहि सेसेहि] इस अवसर्पिणी
समयकाल के दुष्षम सुषम आरे का अधिक भाग बीत जाने पर, तीन वर्ष और साढे आठ चरित्रम् मास शेष रहने पर [पावाए णयरीए हत्थिवालस्स रण्णो रज्जुगसालाए जुण्णाए] पावापुरी में राजा हस्तिपाल के जीर्ण चुंगीघर में [तस्त दुचत्तालीसइमस्स वासा वासस्स जे से चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तियबहुले तस्स णं कत्तियबहुलस्स पण्णरसी पक्षणं जा सा चरमा रयणी] वयालीसवें चौमासे के चौथे मास और सातवें पक्ष में कार्तिक मास के कृष्णपक्ष में और कार्तिक कृष्णपक्ष की अमावस्या के दिन [ताए अद्धरत्तीए एगे अबीए छट्रेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलियंकणिसणे] अन्तिम रात्रि के अर्द्धभाग में अकेले निर्जल षष्ठ भक्त की तपस्या करके पयकासन से विराजमान हुए। [दस अज्झयणाइं पावफलविवागाइं] उस समय दुःख विपाक के दस अध्ययन पाप
||७१४||