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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥७१३ ॥ निर्वाण का दिन समीप जानकर [मज्झ प्रेमाणुरागरेत्तस्स अस्स मम निव्वाणं दण केवलणाणुप्पत्तिपडिबंधो मा भवउ' ति] मेरे प्रेम में अनुरक्त इन्द्रभूति को मेरा निर्वाण देखकर केवलज्ञान की उत्पत्ति में विघ्न न हो, ऐसा विचार कर [गोयमसामिं देवसम्म माहणपडिवोहणटुं आसन्नगामम्मि दिवसे पेसीअ ] गौतमस्वामि को देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के लिए पास के एक ग्राम में दिन में भेज दिया । [तेणं समणे अगवं महावीरे तीसंवासाई अगारवासमझे वसिय ] वे श्रमण भगवान महावीर तीस वर्ष गृहवास में रहें [साइरेगाई दुवालसवासाई छउमत्थपरियाए ] कुछ समय अधिक वारह वर्ष तक छद्मस्थ पर्याय में रहे । [देसूणाई तीसं केवलिपरियाए ] तथा कुछ कम तीस वर्ष केवल पर्याय विचरे [एवं बायालिसं वासाइं सामपणपरियाए वसिय ] इस प्रकार बयालीस वर्ष श्रमण पर्याय में रहकर [बावत्तरिवासाई सव्वाउयं पालयित्ता] एवं वहत्तर वर्ष की समग्र आयुको भोगकर [खीणे वेयणिज्जाउयनामगुत्तकम्मे] तथा भगवतो, निर्वाण समय चरित्रम् 1102311
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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