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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ।७१०||
। भगवतो निर्वाणसमयचरित्रम्
जब देवेन्द्र देवराज शक मुहपत्ती अथवा उत्तरासंग रखकर सूक्ष्मकाय की रक्षा हो इस प्रकार से बोलते हैं तब देवेन्द्र देवराज निरवद्य भाषा बोलते हैं ॥४१॥ ... मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आसन्नं निय निव्वाणतिहिं अणुहविय मज्झ पेमाणुरागरत्तस्स अस्स मम निव्वाणं दळूण केवलनाणुप्पत्ति पडिबंधो मा भवउ त्ति कटु गोयमसामि देवसम्ममाहण पडिवोहणटुं आसन्न गामंसि दिवसे पेसीअ। तेणं समणं भगवं महावीरे तीसं वासाई आगारवासमज्झे वसिअ साइरेगाइं दुवालसवासाइं छउमत्थपरियाए, देमूणाई तीसं वासाइं केवलिपरियाए एवं बायालीसं वासाइं सामण्ण परियाए वसिय, बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगुत्तकम्मे इमीसे ओसप्पिणीए दूसमसुसमाए समाए वहुवीइक्वंत्ताए तीहिं
॥७१०॥
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