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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥७०२॥ चन्दनवालादि SCREE कन्यकानां | दीक्षाग्रहणादिकं प्रकार निवेद किया 'भगवन् ' संसार के भयसे उद्विग्न होकर मैं देवानुप्रिंय के समीप प्रवज्या अंगीकार करना चाहती हूं । तब श्रमण भगवान् महावीरने उस चंदनवाला को इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रिये तुमको सुख उपजे वैसा करो. उस में विलम्ब मत करो तत्पश्चात् उस चंदनबालाने उग्रकुल, भोगकुल, राजकुल एवं अमात्य आदि की राजकन्याओं के साथ ईशानकोने की ओर गये-वहां जाकर अपने हाथों से स्वयमेव पंचमुष्ठिक लोच किया तदनन्तर शीलसेना देवीने उन सभी को सदोरक मुखवस्त्रिका, रजोहरण, विना दंडे के गोछा, पात्रा एवं वस्त्र दिये, वे सभी कन्याओने निर्यन्थि के वेश को धारण किया, तत्पश्चात् चंदनबाला को आगे करके वे सभी जहां पर श्रमण भगवान् महावीर प्रभु विराजमान थे वहां पर गये । वहां जाकर के श्रमण भगवान् महावीर प्रभु को वंदना की नमस्कार किया, वंदणा नमस्कार करके इस प्रकार कहाहे भगवन् यह लोक चारों ओर से जल रहा हैं यावत् भगवानने धर्मदेशना दी ॥७०२॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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