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- कल्पसूत्रे
सशब्दार्थे ॥७०१॥
दीक्षा
भियाए नयरीए] एक आलंभिका नगरीमें [३९] [एगो सावत्थीए नयरीए] एक चन्दन
बालादि श्रावस्ति नगरी में [४०] [एगो वज्जभूमिनामगे अणारियदेसे जाओ] और एक ।
राजवज्रभूमि नामक अनार्य देशमे [४१] हुआ [एवं एगचत्तालिसा चाउम्मासा भगवओ कन्यकानां पडिपुण्णा] इस प्रकार भगवान के इकतालीस चातुर्मास व्यतीत हुए । [तए णं जण
ग्रहणादिकं. वयविहारं विहरमाणे भगवं अपच्छिमं बायालीसइमं चाउम्मासं पावापुरीए हथि- .. पालरण्णो रज्जुगसालाए जुण्णए ठिए] उसके बाद जनपद विहार करते हुए । भगवान अन्तिम बयालीसवां चौमासा करने के लिए पावापुरीमे हस्तिपाल राजा के पुराने राजभवनमे स्थित हुए ॥४०॥
भावार्थ--'तेणं कालेणं' इत्यादि । उस काल और उस समय में चन्दनवाला भगवान महावीर प्रभु को केवली हुए जानकर दीक्षा ग्रहण करने के लिये उत्कंठित होकर प्रभु के समीप पहुंची। उसने प्रभुको आदक्षिणप्रदक्षिणपूर्वक वन्दन-नमस्कार करके इस
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