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________________ कल्पसूत्रे सभन्दाथै ७००|| चन्दनवालादि राजकन्यकानां दीक्षाग्रहणादिक आलोक से लोकको आल्हादित किया [भवकूवपडिए भविए णाणरज्जुणा बाहिं उद्धरीअ] भवरूपी कूप में पडे हुए भव्यों को ज्ञानरूपी डोरे से बाहर निकाला [भगव जलधरोइव अमोहधम्मदेसणामियधाराए पुढवि सिंचीअ] भगवान् ने मेघ की भांति अमोघ धर्मोपदेश की अमृतमयी धारा से पृथ्वी को सिंचन किया [एवं विहारं विहरमाणस्स भगवओ एगचचालीसं चाउम्मासा पडिपुण्णा] इस प्रकार विहार करते हुए भगवान के इकतालीस चातुर्मास पूर्ण हुए। [तं जहा-] वे इस प्रकार-[एगो पढमो चाउम्मासो अस्थियगामे] प्रथम चातुर्मास अस्थिक ग्राम में [एगो चंपाए नयरीए] एक चंपानगरी | में [दुवे पिट्टचंपाए नयरीए] दो चातुर्मास पृष्ठ चंपा में [वारस वेसाली णयरी वाणियग्गामनिस्साए] बारह वैशाली नगरी में और वाणिज्य ग्राम में [चउद्दस रायगिह णगर नालंदा णाम य पुरसाहा निस्साए] चौदह राजगृह नगरके अन्तर्गत नालंदा पाडे में [छ मिहिलाए] छह मिथिलामें [३६] [दुवे भदिलपुरे] दो भदिलपुरमें [३८] [एगो आलं. ॥७००||
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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