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दीक्षा
'कल्पमत्रे । भगवानने धर्मोपदेश दिया [तएणं समणे भगवं महावीरे] तत्पश्चात् श्रमण : चन्दन सशब्दार्थे
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.. बालादि भगवान् महावीरने [चंदणबालं अग्गेकाउं] चन्दनबाला को प्रधान करके [तासं .. ॥६९७॥
राजरायकण्णगाणं] वे सभी राजकन्याओं को [सयमेव पवावेइ] अपने हाथ से दीक्षा दी, कन्यकानां 1 [तएणं चंदणबाला पामोक्खा अज्जाओ] तदनन्तर चंदनबाला आदिआर्यायें [संजमइ]
ग्रहणादिकं संयमवती बनी [जाव गुत्तबंभयारिणीजाया] यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी हुई [पुणो य बहवे उग्ग भोगाइ कुलप्पसूया नरानारीओ य पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं एवं दुवालसविहं
गिहिधम्म पडिवज्जिय समणोवासया जाया] फिर बहुत से उग्रकुल भोगकुल आदि में १.५ जन्मे हुए स्त्री पुरुषोंने पांच अणुव्रत एवं सात शिक्षाव्रतवाले बारह प्रकारके गृहस्थ
धर्म को स्वीकार किया और श्रमणोपासक बने । [तए णं से समणे भगवं महावीरे तित्थयरनामगोयकम्मक्खवणटुं] उसके बाद श्रमण भगवान् महावीरने तीर्थंकर . नाम गोत्रका क्षय करने के लिये [समणसमणी सावयसावियारूवं चउव्विहं संध
॥६९७॥
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