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कल्पसूत्रे कोण की ओग गये [अवकाभित्ता] जाकरके [सयमेव पंचमुट्रियं लोयं करेह] अपने आप IN चन्दन
बालादि सभन्दार्थे पंचमुष्ठिक लोच किया [तए णं] तत्पश्चात् [सीलसेणा देवी] शीलसेना देवीने [ताओ] राज॥६९६॥ उन सबको [सदोरह मुहपत्ती] सदोरक मुखवस्त्रिका [रयहरणाणि] रजोहरण [अदंडिय | कन्यकानां
दीक्षागोच्छगाणि] विना दंडके गोच्छ के [पडिगाहाणि] पात्रा [वत्थाणिय] एवं वस्त्र [पडिच्छइ]
ग्रहणादिकं उन सबको दिये, [सव्वे वि निग्गंथिवेसंधारेह] उन सभीने निर्यन्थिके वेशधारण किये। [तएणं चंदणबालं अग्गेकाउं] तत्पश्चात् चन्दनबालाको आगे करके [सव्वा वि] वे सभी [जेणेव समणे भगव' महावीरे] जहां पर श्रमण भगवान् महावीर प्रभु विराजमान थे [तेणेव उवागच्छइ] वहां पर गये [उवागच्छित्ता] वहां जाकरके [समणं भगवं महावीरं] श्रमण भगवान् महावीरको [वंदइ णमंसइ] वंदना की नमस्कार किया [वंदित्ता णमंसित्ता एव वयासी] वंदना नमस्कार कर इस प्रकार कहा-[आलित्तेणं भंते लोए] हे भगवन् यह लोक चारों तरफ से जलता हैं [जाव धम्ममाईक्खह] यावत् ॥६९६॥
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