________________
.
..
.
.
चन्दन
कल्पसूत्रे - वाला भगवान महावीर प्रभु को केवली हुए जानकर दीक्षा ग्रहण करने के लिए उत्क
। बालादि सशब्दार्थे ण्ठित हुई प्रभु के पास पहुंची। [सा य पहु आदक्खिणं पदक्खिणं करेइ] उसने प्रभुको
राज॥६९५॥ आदक्षिण प्रदक्षिणापूर्वक [वंदइ नमसइ,] वन्दन-नमस्कार किया [वंदित्ता नमंसित्ता एवं १. कन्यकानां
दीक्षा- - वयासी-] वन्दना-नमस्कार कर ऐसा कहा-[इच्छामिणं भंते 'संसार भउव्विग्गाहं देवा
ग्रहणादिकं . णुप्पियाणं अंतिए पव्वइ उं] हे भगवन् ! संसार के भयसे उद्विग्न होकर मैं देवानुप्रिय के समीप प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूं । [तए णं समणे भगवं महावीरे] तब श्रमण । भगवान् महावीरने [तं चंदणबालं एवं वयासी] उस चन्दनबालाको इस प्रकार कहा[अहासुहं देवाणुप्पिया मा पहिबंधं करेह] भो देवानुप्रिये तुमको सुख उपजे वैसा करो उसमें विलम्ब मत करो [तए णं सा चंदनबाला] तदन्तर उस चन्दनबालाने [उग्गभोगरायण्णामच्चप्पभिईणं रायकण्णगाणं सह] उग्रकुल भोगकुल राजकुल की एवं अमात्यादि राजकन्याओं के साथ [उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवकमइ] उत्तर पूर्वदिशा-ईशान
॥६९५॥