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________________ " ". ... ! - कल्पसूत्रे भावार्थ--कायोत्सर्गको पारकर गुरुको वंदना करके रात्रि संबंधी अतिचारोंकी यथा : सामाचारी सशब्दार्थ -4, वर्णनम् ॥६८९॥ .. क्रम अनुक्रमसे आलोचना करे ॥४९॥ . मूलम्-पडिक्कमितु निस्सल्लो, वंदित्ताण तओ गुरुं । . ... काउसग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥५०॥ भावार्थ-प्रतिक्रमण करके माया, मिथ्या, निदान शल्यों से रहित बना हुआ मुनि गुरु महाराजको वंदना करे चतुर्थ आवश्यकके अन्तमें वंदना करके पंचम आवश्यक का प्रारंभ करे । इसके बाद सर्व दुःखविनाशक कायोत्सर्ग करे ॥५०॥ मूलमू-किं तवं पडिवज्जामि, एवं तत्थ विचिंतए। - काउसग्गं तु पारित्ता, वंदइ उ तओ गुरुं ॥५१॥ भावार्थ-कायोत्सर्ग में मुनि विचार करे मैं नमस्कार सहित नौकारसी आदि । किस तपको धारण करूं। पश्चात् कायोत्सर्ग पार कर गुरु महाराजको वंदना करे ॥५१॥ ॥६८९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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