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कल्पसूत्रे सशन्दार्थे
सामाचारी वर्णनम्
॥६९०॥
- मूलम्-पारिय काउसग्गो, वंदित्ताणं तओ गुरुं ।
तवं संपडिवज्जित्ता, करिज्ज भिद्धाणं संथवं ॥५२॥ भावार्थ--कायोत्सर्ग के पश्चात् मुनि गुरु महराजको वंदन करे और यथाशक्ति चिन्तित तपको स्वीकारकर 'नमोत्थुणं' के पाठ को दो बार पढें ॥५२॥ मूलम्-एसा सामायारी, समासेण वियाहिया।
जं चरिता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं तिबेमि ॥५३॥ ___भावार्थ-अनन्तरोक्त यह दस प्रकारकी समाचारी मैंने संक्षेपसे कही है, जिस सामाचारी को पालन करके अनेक मुनि जीव इस संसार सागरसे पार हुए हैं। सुधमास्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं हे जंबू ! भगवान के समीप जैसा मैने सुना है वैसा ही कहता हूं। ॥५३॥
'सामाचारी' अध्ययन समाप्त।
॥६९०॥