________________
कल्पसूत्र सशब्दार्थे
सामाचारी वर्णनम्
॥६८८॥
मूलम्-आगए कायवुस्सग्गे, सव्वदुक्खविमोक्खणे ।
___ काउसग्गंतओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥४७॥ ___ भावार्थ-सर्व दुःखोका निवारक कायोत्सर्गका समय जब आजावे तब मुनि सर्व दुःख निवारक कायोत्सर्ग करे ॥४७॥ मूलम्-राइयं च अईयारं, चिंतिज्ज अणुपुव्वसो ।
नाणम्मि दंसणम्मि, चरित्तम्मि तवम्मि य ॥४८॥ भावार्थ-मुनि ज्ञान के विषयमें दर्शन के विषय में चारित्र के विषय में तप के विषय में एवं वीर्यके विषय में रात्रिमें जो भी अतिचार लगेहों उनका चितवन करे ॥४८॥ - मूलम्-पारिकाउस्सगो, वंदित्ताणं तओ गुरुं।
राइयं च अईयारं, आलोएज्ज जहक्कमं ॥४९॥
Att
.
(૬૮૮