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कल्पसूत्र मसन्दायें ॥६८६॥
वणनम्
भावार्थ-अतिचारोंकी आलोचनाके बाद प्रतिक्रमण भावशुद्धिरूप मनसे, सूत्र- सामाचारी पाठरूप वचन से, मस्तकके झुकानेरूप काय से करके, मायादि शल्य रहित होकर गुरुवंदनकर मुनिसमस्त दुःखोंका नाश करनेवाला कायोत्सर्ग-ज्ञान, दर्शन चारित्रकी शुद्धिके निमित्त व्युत्सर्ग तप करे ॥४२॥ मूलम्-पारियकाउस्सग्गो, वंदित्ताणं तओ गुरुं ।
थुईमंगलं च काउं, कालं, संपडिलेहए ॥४३॥ भावार्थ-कायोत्सर्ग पालनकर मुनि एरुको वंदना करे। वंदना करके पश्चात् नमोत्थुणं लक्षणरूप स्तुतिद्वयको पढे। पढनेके बाद प्रदोषकाल संबंधी कालकी प्रतिलेखना करे॥४३॥ मूलम्-पढमं पोििस सज्झायं, बीयं झाणं झियायई ।
तइयाए निमोक्खं तु, सज्झायं तु चउत्थीए ॥४४॥ भावार्थ-रात्रिकी प्रथम पौरूषी में स्वाध्याय करे दूसरी पौरूषी में ध्यान करे, | ॥६८६॥