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सामाचारी
कल्पसूत्रे
वर्णनम् ।
सशब्दार्थे ॥६८५॥
मूलम्-देवसियं अईयारं, चिंतिज्ज अणुपुव्वसो ।
नाणे य दंसणे चेव, चरितम्मि तहेव य ॥४०॥ भावार्थ-मुनि दिवस संबंधी अतिचारों का प्रभात समयकी प्रतिलेखनासे लगाकर संपूर्ण दिन के अतिचारोंका क्रमशः विचार करना यही कायोत्सर्ग है। ज्ञानके विषयमें दर्शन के विषयमें तथा चरित्रके विषयमें जो अतिचार लगे हो उनका विचार करे ॥४०॥ मूलमू-पारिय काउस्सग्गो, वंदित्ताणं तओ गुरूं।
देवसियं तु अईयारं, आलोइज्ज जहक्कम ॥४१॥ 'भावार्थ--अतिचारोंकी आलोचना करने के बाद मुनि कायोत्सर्ग को पारे-समाप्त करे। इसके पश्चात् गुरुवंदन कर दिवस संबंधी अतिविचार गुरुके समीप प्रकाशित करे।४१॥ __ मूलमू-पडिक्कमित्तु निस्सल्लो, वंदित्ताण तओ गुरुं ।
काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥४२॥
॥६८५॥