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III
सामाचारी वर्णनम्
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥६८४॥
मूलम्-पोरसीए चउब्भागे, वंदित्ताण तओ गुरुं ।
पडिक्कमित्ता कालस्स, सिज्जं तु पडिलेहए ॥३८॥ भावार्थ--मुनि दिनकी चौथी पौरूषीके चतुर्थ भागमें स्वाध्यायको समाप्तकर MH गुरु महाराजको और बडोंको वन्दना करें । उसके बाद काल प्रतिक्रमण करके अपनी
शय्याकी प्रतिलेखना करे ॥३८॥ . ... मूलम्-पासवणुच्चारभूमिं च, पडिलेहिज्ज जयं जई।
काउसग्गं तओ कुन्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥३९॥ | भावार्थ-यतवान् मुनि दिनकी अन्तिम पौरूषीके चौथे भाग उच्चार प्रस्रवण के स्थंडिल के २४ मंडलोंकी प्रतिलेखना करें प्रस्रवणादि भूमिकी प्रतिलेखना करलेने के बाद मुनि शारीरिक एवं मानसिक तापका निवारक कायोत्सर्ग करे ॥३९॥
६८४॥