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कल्पसूत्रे
वर्णनम्
मूलम-अवसेसं भंडगं गिज्झा, चक्खुसा पडिलेहए।
सामाचारी सशब्दार्थे । ॥६८३॥
... परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरए मुणी ॥३६॥ ___भावार्थ--मुनि समस्त वस्त्रपात्ररूप उपकरणों की पहिले नेत्रोंसे प्रतिलेखना करे
ताकि कोई जीवजन्तु उसपर न हो। बाद में उन्हें लेकर ज्यादा से ज्यादा आधे योजन। .. तक आहार पानो को गवेषणा निमित पर्यटन करे । क्योंकि दो कोसके ऊपरका अशन.. पानादिक साधुको अकल्पनीय कहा गया है ॥३६॥
मूलम्-चउत्थीए पोरिसीए, निक्खवित्ताण भायणं ।
सज्झायं च तओ कुज्जा, सव्वभाव विभावणं ॥३७॥ भावार्थ-मुनि आहारपानी करके चौथी पौरूषी में पात्रोंको वस्त्रमें बांध कर रक्खे, पश्चात् जीवादिक समस्त तत्वों के निरूपक स्वाध्यायको करे ॥३७॥
॥६८३॥