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सशब्दार्ये
कल्पसूत्रे / रक्षा के लिये.(६) धर्मध्यानकी चिंता के लिये भक्तपान की गवेषणा करे ॥३३॥
IA सामाचारो
वर्णनम् . मूलम्-निग्गंथो धिइमंतो, निग्गंथी वि न करिज छहिं च वे। ॥६८२॥
ठाणेहिं तु इमेहिं अणतिक्कमणा य से होई॥३४॥ भावार्थ--धर्माचरण के प्रति धैर्यशाली निग्रन्थ साधु अथवा साध्वी ये दोनों भी इस वक्ष्यमाण छह स्थानों के उपस्थित होने पर भक्तपानकी गवेषणा न करे, ऐसा करने | I से उनके संयम योगोंका उल्लंघन होता है ॥३४॥
. मूलम्-आयंके उवसग्गे, तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसु ।
. पाणिदया तवहेडं, सरीखोच्छेयणढाए ॥३५॥ भावार्थ--(१) ज्वरादिक रोग के होने पर (२) देव मनुष्य एवं तिर्यञ्चकृत उपसर्ग होने पर (३) ब्रह्मचर्य रक्षण के लिये (५) चतुर्थ भक्तादिरूप तपस्या करने के लिये (६) तथा उचित समय में अनशन कनेके लिये भक्तपानकी गवेषणा नहीं करना चाहिये॥३५॥
॥६८२॥