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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
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नमस्कार होवो यों जसे दिशाकुमारियोंने कहा वैसे ही कहना यावत् अहो देवानुप्रिय ! तू धन्य है तू पुन्य वाली है तू कृतार्थ है अहो देवानुप्रिये ! मैं शक्र नामक देवेंद्र भगवान् तीर्थंकरका जन्म महोत्सव करूँगा इससे तुम डरना नहीं यों कहकर तीर्थंकर CHITTA उपस्थापनी निद्रा देकर तीर्थंकर जैसा दूसरा रूप बनाकर उनके पास रखता है फिर पांच शक्र का वैक्रेय बनाता है जिन में से एक शकेन्द्र भगवान् तीर्थंकर को करतल से ग्रहण करता है एक शकेन्द्रपीछे रहकर छत्र धारण करता दो शकेन्द्र दोनों बाजु रह कर चामर वजते और एक शकेन्द्र हाथ में वज्र धारणकर तीर्थंकर के आगे चलता है | १४ |
मूलम् - तणं से सके देविंदे देवराया अण्णेहिं बहूहिं भवणवई वाणमंतरजोइसवेमाणीएहिं देवेहि देवीहिय सद्धिं संपरिवुडे सविड़ढीए जाव णाईएणं ता उक्किट्ठा जाव वीइवयमाणे २ जेणेव मंदरे पव्वए जेणेव पंडगवणे जेणेव अभिसेयसिला जेणेव अभिसेयसीहासणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सीहासणव
शक्रेन्द्रकततीर्थंकर
जन्म
महोत्सवः
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