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सामाचारी
वर्णनम्
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कल्पसूत्रे बाद दोनों हाथोंका प्रतिलेखनारूप विशोधन करें, हाथ पर जीवजंतु हो तो उसका एकान्त सशब्दार्थे 8 स्थान पर परिष्ठान करें ॥२५॥
मूलभू-आरभडा सम्मद्दा, वज्जेयव्वा य मोसली तइआ।
पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्टा ॥२६॥ भावार्थ-मुनिको आरभटा दोष प्रतिलेखना में छोडना चाहिये । इसका दोष समग्र वस्रकी प्रतिलेखना नहीं करके, बीच में अन्य वस्त्रों को शीघ्रतासे लेना इसको आरभटा दोष कहा है। दूसरा दोष संमर्द है, वस्त्र के कोनों का मोडना, तीसरा दोष है, मौशली. ऊंचा, नीचा, तीरछा संघटन होना। चौथा दोष है प्रस्फोटना-धूलि से युक्त वस्त्रको फटकारना । पांचवा दोष विक्षिप्त है-प्रतिलेखना किया हुआ वस्त्र अप्रतिलेखित के साथ मिला देना। वेदिका छठा दोष है । इन छ दोषों को साधुको प्रतिलेखना में त्यागना चाहिये ॥२६॥
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INTAIL
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