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कल्पसूत्रे
सामाचारी वर्णनम्
सशब्दार्थे
॥६७६॥
मूलम्-पोरसीए चउब्भागे, वंदित्ताणं तओ गुरुं।
अपडिक्कमित्ता कालस्स, भायणं पडिलेहए ॥२२॥ . भावार्थ-पौरुषीके अवशिष्ट चतुर्थभागमें गुरु महाराज को वंदना करके, वादमें काल प्रतिक्रमण नहीं करके उपकरण मात्र की प्रतिलेखना करे स्वाध्याय के बाद काल प्रतिक्रमण करना चाहिये। चतुर्थ पौरुषीमेंभी स्वाध्याय करनेका विधान है। ॥२२॥
मूलभू-मुहपोत्तियं पडिलेहित्ता, पडिलेहिज्ज गोच्छगं।
___गोच्छगलइयंगुलिओ, वत्थाई पडिलेहए ॥२३॥ भावार्थ-प्रतिलेखनाकी विधिका वर्णन कहते है कि मुनि आठ पुटवाली सदोरकमुखवस्त्रिकाकी सर्व प्रथम प्रतिलेखना करे । इसके बाद प्रमार्जिकाकी, रजोहरणकी, और वस्त्रों की प्रतिलेखना करे ॥२३॥
॥६७६॥