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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
सामाचारी वर्णनम्
॥६७५॥
मूलम्-तम्मेव य नक्खत्ते, गयणचउब्भाय सावसेसम्मि।
वेरत्तियं पि कालं, पडिलेहित्ता मुणी कुज्जा ॥२०॥ भावार्थ-फिर वही नक्षत्र जब तृतीय भाग के अंतिम भागयुक्त चौथे भागरूप आकाशमें आवे तब मुनि तृतीय प्रहरकी चारों दिशाओ में आकाशकी प्रतिलेखना करके स्वाध्याय करे ॥२०॥
मूलम्-पुव्विलम्मि चउब्भागे, पडिलेहित्ताण भंडगं ।
___गुरूं वंदित्तु सज्झायं, कुज्जा दुःखविमोक्खणं ॥२१॥ भावार्थ-दिवसके सूर्योदय के प्रथम प्रहर में मुनि सविनय सवन्दन गुरुके आदेश को प्राप्त करके वर्षाकल्प आदिके योग्य वस्त्र एवं पात्रादिकोंकी प्रतिलेखना करके गुरुको वन्दना करे और पश्चात् शारीरिक एवं मानसिक समस्त दुःखोके नाशक स्वाध्याय करे ॥२१॥
॥६७५॥