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कल्पसूत्रे
सामाचारी वर्णनम्
सशब्दार्थे ॥६७४||
मूलम्-पढमं पोरिसि सज्झाय, बीयं झाणं झियायइ ।
तइयाए निदमोक्खंतु, चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥१८॥ भावार्थ-साधु रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करे, दूसरे प्रहर मे चिन्तवन करे, तीसरे प्रहर में निद्रा लेवे, चतुर्थ प्रहर में स्वाध्याय करे ॥१८॥ मूलम्-जं नेइ जया रत्तिं, नक्खत्तं तम्मि नहचउब्भाए।
संपत्ते विरमेज्जा, सज्झाय पओसिकालम्मि ॥१९॥ भावार्थ-मुनिको रात्रि के चार प्रहररूप चारों भागों के उपाय जानने का मार्ग | दिखाते हैं। जिस नक्षत्रके उदित होने पर रात्रिका प्रारम्भ होता है और उसीके अस्त होने पर रात्रिका अन्त होता है। ऐसा वह नक्षत्र जब आकाशके पहिले चतुर्थ भागमें प्राप्त हो तो रात्रि के प्रथम प्रहर में की हुई स्वाध्यायका परित्याग करे । इस प्रकार मुनि के समस्त रात्रि कर्तव्यको बताया है ॥१९॥
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