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कल्पसूत्रे
सशब्दार्थे
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सामाचारी ___ मूलम्-अब्भुट्टाणं गुरुपूया, अच्छणे उवसंपया ।
4 वर्णनम् - एवं दुपंचसंजुत्ता, सामाचारी पवेइया ॥७॥ भावार्थ-गुरुजनों के आचार्य आदि पर्याय ज्येष्ठों के निमित्त आसन छोडकर खडे.. होना और बाल साधुओं की सेवा में उद्यमशील रहना, अभ्युत्थान है। ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की प्राप्ति के निमित्त आचार्य अन्यगणों के पास रहना उपसम्पत् सामाचारी है ।। मूलम्-पुव्विल्लंमि चउब्भागे, आइच्चम्मि समुट्ठिए। .
भंडगं पडिलेहित्ता, वंदित्ता य तओ गुरुं ॥८॥ पुच्छिज्जा पंजलीउडो, किं कायव्वं मए इह ।
इच्छं निओइउं भंते ! वेयाबच्चे व सज्झाए ॥९॥ भावार्थ-सूर्य के उदित होने पर प्रथम पौरूषी में पात्र, वस्त्रादिकों की मुखव
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