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कल्पसूत्रे
सामाचारी वर्णनम्
॥६६८॥
आवश्यकी सामाचारी करनी चाहिये। जब उपाश्रय में प्रवेश करे तब नैषेधिकी सशब्दार्थ - सामाचारी करे। जो काम स्वयं करने का है उसमें (यह मैं करूं या नहीं) इस प्रकार
पूछने रूप आप्रच्छना सामाचारी करे। जब गुरु शिष्य के पूछने पर कार्य करने की आज्ञा दे देवें तो शिष्य जब वह उस कार्य का आरंभ करे पुनः आज्ञा लेवे इसका नाम प्रतिप्रच्छना सामाचारी है ॥५॥ ___ मूलम् छन्दणा दव्वजायणं, इच्छाकारो य सारणे।
मिच्छाकारो य निंदाए, तहक्कारो पडिस्सुए ॥६॥ - भावार्थ-पूर्वगृहीत अशनादि सामग्री द्वारा शेष मुनिजनों को आमंत्रित करना यह
छंदना है। अपने या दूसरे के कार्य में प्रवर्तन होने में इच्छा करना इच्छाकार है। A अतिचार हो जाने पर 'मिच्छामिदुक्कडं' देना (मिथ्याकार) है। गुरुजनों के वाचना आदि
देते समय (ऐसा ही है) कहकर अंगीकार करना तथाकार है ॥६॥
॥६६८॥