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सामाचारी
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥६६७॥
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वर्णनम्
| कार्य करना। यह छठी सामाचारी है। (७) 'मिथ्याकार' सामाचारी-किसी भी
प्रकार के अतिचार की संभावना होने पर मिच्छामि दुक्कडं का देना, वह सातमी सामाचारी है। (८) 'तथाकार' सामाचारी-गुरु के आदेश को 'तथेति' कहकर शिष्य को स्वीकार करना वह आठवी सामाचारी है । (९) 'अभ्युत्थान' सामाचारी-आचार्य या बडे साधुजन के आने पर खडे हो जाना उनकी सेवा के लिये तत्पर रहना। वह नवमी सामाचारी है । (१०) 'उपसम्पत्' सामाचारी-ज्ञानादिक गुणों की प्राप्ति के लिये दूसरे स्थान में जाना। वह दसवीं सामाचारी है।
इन दस सामाचारीओं का पालन मुनिजन करते हैं। मूलम्-गमणे आवस्सियं कुज्जा, ठाणे कुज्जा णिसीहियं ।
आपुच्छणा सयंकरणे परकरणे पडिपुच्छणा ॥५॥ - भावार्थ-किसी कारण से साधु को उपाश्रय से बाहिर जाना पडे तो साधु को
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