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कल्पसूत्रे
शा सामाचारी
वर्णनम्
सशब्दार्थे
॥६६६॥
अब्भुट्टाणं नवमा, दसमा उवसंपया।
एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेइया ॥४॥ भावार्थ-अब सूत्रकार उस समाचारी के दस प्रकारों को कहते है। आवश्यकी सामाचारी-बिना किसी प्रमाद के आवश्यक कर्तव्य करने को कहते हैं, यह प्रथम सामाचारी है (२) 'नैषेधिकी' सामाचारी-गुरुमहाराजने जो कार्य करने को कहा उतना ही करना चाहिये अन्य नहीं। कथित कार्य को करके उपाश्रय में आता है तो नैषेधिकी कहता है। यह दूसरी सामाचारी है। (३) आप्रच्छना' सामाचारी-शिष्य गुरुदेव से विनय के साथ सब कार्य पूछता है यह तीसरी सामाचारी है। (४) 'प्रतिप्रच्छना' सामाचारी-कार्य की आज्ञा होने पर भी फिर गुरू से पुनः पूछना । यह चौथी सामाचारी है। (५) 'छन्दना' सामाचारी-अपने आहार आदि के लिये अन्य साधुओं को यथा क्रम निमंत्रित करना। यह पांचवी सामाचारी है । (६) 'इच्छाकार' सामाचारी-विना प्रेरणा के साधर्मी का
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