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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
॥६६५॥
सामाचारी का वर्णन
मूलम् - सामायारिं पवक्खामि, सव्वदुक्खविमोक्खणिं ।
जं चरित्ता ण निग्गंथा, तिण्णा संसारसागरं ॥१॥
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भावार्थ - श्रीसुधर्मा स्वामी जंबूस्वामी से कहते हैं कि हे जम्बू ! समस्त शारीरिक एवं मानसिक दुःखो से छुटकारा दिलानेवाली साधुजनों के कर्तव्य रूप सामाचारी को मैं कहूंगा। जिस सामाचारी का सेवन करके निर्ग्रन्थ साधु नियमतः संसाररूप दुस्तर समुद्र को पार होते हैं, हुए हैं और आगे भी होंगे ॥१॥
मूलम् - पढमा आवस्सिया नाम, बिइया य निसीहिया ।
आपुच्छणा यं तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा ॥२॥ पंचमा छंदणा नामं, इच्छाकारो य छट्टओ । सत्तमो मिच्छाकारोउ, तहक्कारो य अट्टमो ॥३॥
सामा
वर्णनम्
॥६६५॥