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सामाचार
वर्णनम्
कल्पसूत्रे
सशन्दार्थे . ॥६७०॥
स्त्रिका सहित प्रतिलेखना करके, आचार्यादिक बडों को वंदना करके दोनों हाथ जोड करके इस समय क्या करना चाहिये ऐसा पूछे। वैयावृत्य एवं खाध्याय करने की आज्ञा मांगे ॥८-९॥ मूलम्-वेयावच्चे निउत्तणं कायव्वं आगलायओ।
संज्झाये वा निउत्तेण, सव्वदुक्खविमोक्खणे ॥१०॥ भावार्थ-चतुर्गतिक संसार के दुःखो के निवारक ऐसे साधु को शारीरिक परिश्रम का | ख्याल न करके वैयावृत्य अच्छी प्रकार करना चाहिए, बिना किसी ग्लानभाव के स्वाध्याय करना चाहिये ॥१०॥ मूलम्-दिवसस्स चउरो भाए, कुजा भिक्खू वियक्खणे।।
तओ उत्तरगुणे कुज्जा, दिणभागेसु चउसु वि ॥११॥
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