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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
सनावध्या
प्रजाका अहित करने में उत्साह वाले बहुत से राजा होंगे। व्याधि, रोग, भगवच्छामहामारी बार बार होंगी, यावत् यहां तक कि प्रातःकाल होते ही चारों दिशाओं में
दि कथनम् ॥६६०॥
हाहाकार शब्द होंगे। अनेक मनुष्य अपने मत का पक्ष लेकर असत्य बोलने वाले होंगे। II
बहुत से हिंसादि में धर्म माननेवाले होंगे। फिर से गौतमस्वामी पूछते हैं-हे भगवन् । ME लिङ्ग कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु फरमाते हैं-हे गौतम ! लिंग पांच
प्रकार के होते हैं, वह इस प्रकार से है-गृहस्थलिंग १, अन्यलिंग २, कुलिंग ३, द्रव्यलिंग ४ और स्वलिंग ५। गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं-हे भगवन् कितने प्रकार के स्वलिंग कहे गये है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-हे गौतम! स्वलिंग पांच प्रकार के कहे गये हैं अहंत भगवन्त १, आचार्य २, उपाध्याय ३, साधु ४ एवं साध्वियां ५ ॥३५॥
मूलम्-कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पंचवत्थाई धरित्तए वा परिहरित्तए वा तं जहा-जंगिए १, भंगिए २, साणए ३, पोत्तिए ४, तिरिड- ॥६६०॥