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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ६६१॥ COCEEDS6 पट्टए ५, णामं पंचमए । कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पंचरयहरणाई धरितए वा परिहरित्तए वा तं जहा - उग्गहे १, उदिए २, साणए ३, पच्चापिच्चय ४ मुंजापिच्चए ५ नामं पंचम ॥ ३६ ॥ शब्दार्थ - [ कप्पड़ ] कल्पता है [णिग्गंथाण वा] साधुओं को [णिग्गंथीण वा] साध्वीओं को [पंचवत्थाई ] पांच प्रकार के वस्त्र [धरितए वा] धारण करने योग्य [परिevar ar] पहनने के लिये [तं जहा] जैसे [जंगिए ] ऊनके वस्त्र [ भंगिए ] पाट (रेशम) का बना हुआ कपडt [साणए] सनका बना हुआ कपडा [पोत्तिए] सूत का कपडा [तिरीडपट्टए णामं पंचमए] वृक्ष - विशेष की छाल का बना हुआ कपडा । [कप्पइ ] कल्पता है [निगंधाण वा] साधुओं को [निग्गंथीण वा] साध्वीओं को [पंच रयहरणाई ] पांच प्रकार के रजोहरण [ धरितए वा] धारण करने योग्य [परिहरितए वा ] व्यवहार में भगवच्छा 1. सनावध्यादि कथनम् ॥६६१॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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