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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥६५८॥ भगवच्छासनावध्यादि कथनम् साहूणो ४, साहूणी णं ५॥३५॥ ___शब्दार्थ-[तेणं कालेण] उस काल [तेणं समएणं] उस समय [भंते] हे भगवन् । [दूसमे काले] दूषम काल में [केरिसए] किस प्रकार का [आयारभावपडोयारे] आचार भाव [भविस्सइ] होगा [गोयमा] हे गौतम ! [पुणो पुणो] वारंवार [दुभिक्खा पडि. स्संति] दुर्भिक्ष अर्थात् दुष्काल पडेगा [रायाणो] राजा [बहबे भविस्संति] बहुत से होंगे [पयाणं] प्रजा का [अहियकारया] अहित करने में [उस्सुका] उत्साहवाले [अइरायाभविस्संति] बहुत से राजा होंगे [वाहि] व्याधि [रोगे] रोग [मारीय] महामारी [पुणो पुणो] बारबार [भविस्संति] होंगी [जाव] यावत् यहां तक कि [पायकाले] प्रातः काल होते ही [चउद्दिसिं] चारों-दिशाओं में [हाहाकारा] हाहाकार शब्द [भविस्सइ] होंगे। [बहवे जणा] अनेक मनुष्य [मयपक्खगहिया] अपने मत का पक्ष ग्रहण करके [असच्च भासिणो] असत्य भाषी-असत्य बोलने वाले [भविस्संति] होंगे। [वहवे वाममग्गा ॥६५८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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