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कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥६५७॥
नहीं है ऐसा कहेगा नास्ति भाव को अस्ति भाव से कहेगा इस कारण से हे गौतम! वह जीव पाप कर्म का उपार्जन करता है, और मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का बंध करते हैं ॥ ३४ ॥ मूलम् - - तेणं कालेणं तेणं समरणं भंते दूसमे काले केरिसए आयारभाव - पडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! पुणो पुणो दुब्भिक्खा पडिस्संति रायाणो बहवें भविस्संति पयाणं अहियं कारया उस्सुक्का अइसया भविस्संति वाहीरोगमारीय पुणो- पुणो भविस्संति जाव पायकाले चउद्दिसि हाहाकारा भविस्संति बहवे जणा मयपक्खगहिया असच्चभासिणो भविस्संति । केवइयाणं भंते लिंग पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचलिंगपण्णत्ता तं जहा - गिहिलिंगे १, अण्णलिंगे २, कुलिंगे ३, दव्वलिंगे ४, सलिंगे ५ । कइ विहेणं भंते सलिंगे पण्णत्ते ? गोयमा ! सलिंगे पंचविहे पण्णत्ते तं जहा - अरिहंते १, आयरिया २, उवज्झाया ३,
भगवच्छासनावध्या
दि कथनम्
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