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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥६५६॥
भगवच्छा'सनावध्यादि कथनम्
| ट्रेणं] इस कारण से [गोयमा] हे गौतम ! [से जीवे] वह जीव [पावाई कम्माइं] पाप | कर्म का [जयणइ] उपार्जन करता है और [मिच्छा मोहणिज्ज कम्मं निबंधइ] मिथ्या| त्व मोहनीय कर्म का बंध करते हैं ॥३४॥ __भावार्थ-हे भगवन् अमुक वाल जीव मिथ्या मोहनीय के उदय से देवानुप्रिय की प्रतिमा करावे अथवा प्रतिमा की प्रतिष्ठा करावे वह जीव किस प्रकार के कर्म का उपार्जन-बंध करता है ? हे गौतम ! वह जीव एकान्त रूप से पाप कर्मों का उपार्जन | करता है । गौतमखामी पूछते हैं-हे भगवन् ! किस कारण से इस प्रकार से आप कह रहे हैं ? भगवान् गौतमखामी से कहते हैं-हे गौतम ! वह जीव मिथ्यात्व भाव को प्राप्त करके अजीव को जीव भाव से मानेगा छह जीवनिकायों का वध करेगा, मेरे मार्ग की अवहेलना करावेगा। मेरे शासन का उदय नहीं करेगा मैंने अस्तित्व को (अस्ति) ऐसा कहा है। नास्तित्व को (नास्ति) ऐसा कहा है। वह जीव अस्तित्व को
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