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कल्पसूत्रे सभन्दाथै
शकेन्द्रक्रततीर्थकर
महोत्सव
ril नंतर बहुत आभियोगिक देवता व देवियों अपने रूप से यावत् कार्य से शक देवेन्द्र के all आगे पीछे व आसपाससे चलते हैं तदनंतर सौधर्म देवलोक रहनेवाले बहुत देवता व will देवियों सब ऋद्धि सहित यावत् विमान पर आरूढ हुए आगे चलते हैं तत्पश्चात् पांच
अनीकसे परिक्षिप्त यावत् महेन्द्रध्वजा जिनके आगे चलती है ऐसा शक देवेन्द्र चौरासी हजार सामानीक देव सहित यावत् परवरा हुआ सब ऋद्धि यावत् बडे २ शब्द सहित सौधर्म देवलोक के मध्य बीच में होकर दिव्य देव ऋद्धिबताता हुवा जहां सौधर्म देवलोकका उत्तरदिशाका निर्यान (नीचे उतरनेका) मार्ग है वहां एक लाख योजन का शरीर बनाकर आता हुआ उत्कृष्ट दिव्य यावत् देवगति से जाता हुआ, तीर्छा असंख्यात द्वीप समुद्र के मध्य बीच में होकर जहां नंदीश्वर द्वीप है वहां अग्नि कौन के रतिकर पर्वत पर आता है यों जैसे सूर्याभ देवकी वक्तव्यता कही है वैसा ही कहना विशेष में यहां शकेन्द्रका अधिकार कहना यावत् दिव्य देवऋद्धि यावत् यान विमान को साहरन करके
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