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शक्रेन्द्रक्रत
तीर्थकर
जन्ममहोत्सवः
शाह
कल्पसूत्रे तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरूहति अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ दिव्वाओ सशब्दार्थे
जाणविमाणाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति ॥१३॥
भावार्थ-जब शक देवेन्द्र उस विमानपर आरूढ होता है तब उसके आगे आठ आठ मंगल चलते हैं तदनंतर पूर्ण कलश झारी दिव्य पताका चामर और आंखको सुखकारी देखने योग्य वायु से कंपायमान विजय वैजयंती नामक पताका गगनतलको स्पर्श करती हुई यथानुक्रम से निकलती है तदनंतर छत्र सहित गार कलश चलता 1 है तदनंतर वज्ररत्नमय, वर्तुल लष्ठ सुश्लिष्ठ घटारी मठारी विशिष्ठ अनेक प्रकारकी
पांचवर्ण वाली अन्य छोटी ध्वजाओं से सुशोभित और वायुसे उडती हुई विजय वैजयंती पताका व छत्रातिछत्र वाली गगन तल को स्पर्श करती एक हजार योजनकी महेन्द्रध्वजा आगे चलती है तदनंतर अपने २ नेपथ्य (वेश) में सज्ज बने हुए व सब अलंकार से विभूषित पांच अनीक व उनके अधिपति देव अनुक्रम से चलते हैं तद
॥५४॥