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कल्पसूत्रे सशब्दार्य ॥६४४॥
भावार्थ--अरिहंत के अनुयायिओं को उपकरण, उपधी वस्त्र, पात्रादि किस प्रकार स्वलिंगाधु
पधिसंपासे प्राप्त करना चाहिये-हे गौतम ! गाम, नगर राजधानी से खुद भी उपकरण, उपधि SHAH वस्त्र, पानादि ले आवे, दूसरों के द्वारा भी प्राप्त करे, जिस प्रकार योग्य लगे वैसा करे। गहन अटवी-वन में उसको खास कारणसर देवता भी उपकरणादि देते हैं, अनादिकाल से सदा के लिये ऐसा ही चला आता है, देवता की भावना भी इस प्रकार होती है कि अरिहंत के अनुयायिओं को उपकरण वस्त्रादिक पात्र जिन की दृढ भावना होती है । उनको देवता आकर देते हैं, दूसरे को नहीं, हे गौतम ! केवली भगवान् को सर्व जगह । देवता ही देते हैं, जिस प्रकार भरत राजा को दिया था, इस प्रकार उपरोक्त साधु की दीक्षा सामग्री कही है ॥३०॥
मूलम्-जंपि वत्थं व पायं वा, कंबलं पायपुंछणं, तंपि संजमं लज्जा , धारंति परिहरंति य ॥३१॥
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