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4 चारित्र
धारणादि..
कल्पसूत्रे । को, निरगंथीणं, वा] अथवा. निग्रंथियों को,[मुहे] मुखपर [मुहपत्तिं] मुहपत्ती को [अब । सामायिक सशब्दार्थे ।
धित्ता] विना वांधे, [एयाइं] ये आगे कहे जानेवाले [कज्जाइं]. कार्योंका [करित्तए] । ॥६३३॥
करना कल्पता नहीं है। इसका नाम निर्देश पूर्वक सूत्रकार कहते हैं। [चिट्टित्तए वा] विधि
खडा, रहना अथवा निसीत्तए वा] बैठना अथवा [तुयहित्तए वा] त्वग्वर्तन करना• पसवाडा, बदलना [निदाइत्तए वा] निद्रा लेना [पयलाइत्तए वा] प्रचला अर्धनिद्रा लेना
[उच्चारं] उच्चार [पासवणं वा] प्रश्रवण [खेलं वा] कफ सिंघाणं वा] नासिका का । मल इनको [परिटुवित्तए वा] परठवना नहीं कल्पता है तथा धम्मकह कहित्तए वा]. धर्मकथा का कहना तथा [संबं] सर्व प्रकार के [आहार] आहार का [एसित्तए वा] ग्रहण करना तथा [भंडोवगरणाइ] भांडोपकरण की पडिलेहइत्तए वा] प्रतिलेखना करना । तथा [गामाणुगाम] एक ग्राम से दूसरे ग्राम [दूइज्जित्तए वा], विहार करना तथा [सज्झायं वा करित्तए] स्वाध्याय करना तथा [झाणं वा झाइत्तए]. ध्यान करना [काऊ ॥६३३॥
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