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कल्पसूत्रे .. सग्गं वा ठाणं ठाइत्तए] एक स्थान में स्थित रूप कायोत्सर्ग करना ये सब पूर्वोक्त सामायिक सशब्दार्थे । . कार्य मुख पर मुखवस्त्रिका बांधे विना करना नहीं कल्पता है। [कप्पइ] कल्पता है ।
चारित्र॥६३४॥
[निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा] निग्रंथों को और निग्रंथियों को [मुहे] मुख पर [मुहपत्ति] विधि । मुखपत्ती को [बंधइत्ता] बांधकर [एयाइ] ये सब [कज्जाइ] कार्यो का [करेत्तए] करना
कल्पता है वे कार्य ये हैं-[चिद्वित्तए वा] खडा रहना [जाव] यावत् पूर्वोक्त सब कार्य
तथा [काउसग्गं ठाणं ठाइत्तए वा] एक स्थान में स्थितिरूप कायोत्सर्ग करना ॥२५॥ ... ... भावार्थ-उसके पीछे आचार्य इसी प्रकार सामायिक चारित्र अंगीकार करावे
उसके पीछे शिष्य श्रद्धायुक्त होकर आचार्य के वचनानुसार इस प्रकार से कहे हे भग... वन् मैं सामायिक करता हूं सब सावद्य योगका प्रत्याख्यान करता हूं जीवन पर्यन्त तीन .. करण और तीन जोगों से नहीं करूंगा अन्य के द्वारा नहीं कराऊंगा। और करते हुए ... दूसरे को अनुमोदन नहीं करूंगा हे भगवन् मन वचन काय से उसका प्रतिक्रमण ॥६३४॥
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