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________________ कल्पसूत्रे सभन्दार्थे ॥६३५॥ ScIS करता हूं। निंदा करता हूं । गर्दा करता हूं सावधकारी त्याग करता हूं। उसके पीछे । - सामायिक शिष्य स्तव स्तुति मंगलरूप (नमोत्थुणं) का पाठ भणे। तदनन्तर आचार्य शिष्य को चारित्र . धारणादि शिक्षा देवें निर्ग्रन्थ अथवा निग्रन्थियों को मुखपर मुहपत्ति विना बांधे ये आगे कहे धारणा जानेवाले कार्यों को करना कल्पता नहीं है। इसका नाम निर्देश पूर्वक सूत्रकार कहते हैं-खडा रहना, बैठना अथवा त्वम् वर्तन करना-पसवाडा बदलना निद्रा लेना, उच्चार प्रश्रवण, कफ, नासिका का मल, इनको परठवना नहीं कल्पता है। धर्मकथा कहना :: तथा सर्व प्रकारके आहार का ग्रहण करना तथा भांडोपकरणकी प्रतिलेखना करना तथा " एक ग्राम से दूसरे गाम विहार करना तथा स्वाध्याय करना तथा ध्यान करता एक स्थान में स्थितिरूप कायोत्सर्ग करना ये सब कार्य मुख पर मुखवस्त्रिका वांधे विना करना . नहीं कल्पता है। निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थियोंको मुखपर मुहपत्तीको बांधकर ये नीचे बताये कार्यों का करना कल्पता है वे कार्य ये हैं-खडा रहना यावत् पूर्वोक्त सब कार्य तथा एक ॥३५
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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