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________________ SA कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥६३६॥ धारण निषेधः स्थानमें स्थिति रूप कायोत्सर्ग करना ॥२५॥ . . . . . . अन्यलिंगर मूलम् णो कप्पडू निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा अण्णलिंगे वा गिहिलिंगे l वा कुलिंगे वा होइत्तए, कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा सलिंगे वा सयावट्टित्तए, साहुवेसेणं करमाणे भंते ! जाव किं जणयइ ? गोयमा ! लाघवं जणयई, अहवाः भावेणं णाणं जावः तवं जणयइ, एवामेव भंते ! जे अईया, जे पडुपन्ना जे आगमिस्सा अरिहंता भगवंता किं ते सया सलिंगे वट्टइस्सति ? हंता, गोयमा ! सव्वे 'वि अरिहंता एवं संलिंगे पट्टिसति ॥२६॥ - _ो कपडा नहीं. कल्पता है निर्णयाणं वा] निर्ग्रन्थों को [निग्गंधीणं वा] निर्ग्रन्थियों को [अण्णलिंगे वा] अन्यवेष [गिहिलिंगे वा] गृहस्थ वेष [कुलिंगे वा] IS कुवेष [होइत्तए] होना [कप्पइ] कल्पता है [निग्गंथाणं वा] निर्ग्रन्थों को [निग्गंथीणं वा] 5 ॥६३६॥ ......शब्दाथ-णा कप्पडा नही 1... litil
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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