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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
॥६३२॥
नानुसार [एवं] इस प्रकार से [वएज्जा ] कहे [करेमि भंते सामाइयं] हे भगवन् मैं सामाइक करता हू' [सव्वं सावज्जं जोगें] सब सावध जोग का [पच्चक्खामि ] प्रत्याख्यान करता हूँ [जाव जीवाए ] जीवन पर्यन्त [तिविहं तिविहेणं] तीन करण और तीन जोगों से [न करेमि ] नहीं करूंगा [न कराबेमि] अन्य के द्वारा नहीं कराऊंगा [करंतं ] करते हुए [अन्नं] दूसरे को [ न समणुजाणेमि ] अनुमोदन नहीं करूंगा [मनसा ] मनसे [वयसा ] वचन से [कायसा] काय से [तस्स ] उसका [ते] हे भगवन् [पडिक मामि] प्रतिक्रमण करता हूं [निंदामि ] निंदा करता हूं । [ गरिहामि ] गर्हा करता हूं । [tri] सावकारी आत्मा का [वोसिरामि] त्याग करता हूं । [तओ पच्छा] उसके पीछे [हे] शिष्य [थयथुइमंगल] स्तवस्तुति मंगलस्वरूप [दू नमोत्थूणं ] दोनो का पाठ [भणेज्जा] भणे [तणं] तदनन्तर [आयरिए ] आचार्य [सेह] fior at [Peraras] शिक्षा देवे [णो कप्पइ] नहीं कल्पता है [निग्गंथाणं] निर्ग्रन्थों
सामायिक चारित्र
धारणादि
विधि
॥६३२॥