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________________ बादरवायुकायानां नाम कारणम् कल्पसूत्र में [दलेइ] लेवे [दलइत्ता] रजोहरण और पादकेसरिका-गोच्छे को कांख में लेकर [करसशब्दार्थे मोबा - मझे] हाथ में [पायबंधणं गिण्हइ] पात्रबंधन-पात्र को बांधने के वस्त्र को [जं वत्थंते] ॥६२६॥ जिस वस्त्र में [पायाइं] पात्रों को [ठवित्ता] रखकर [पायाइं बंधेइ] पात्रों को बांधते हैं इसलिए [तं] उसको [पायबंधणं वत्थं] पात्र बंधन वस्त्र-पात्रों को बांधने का वस्त्र [पवुच्चइ] कहते हैं [एवं] इसी प्रकार से [पायठवणं वि] पात्र स्थापनक-जिस वस्त्र पर पात्र रखे जाते हैं वह [एवं] इसी प्रकार से [मव्योवही वि] और भी सभी उपधी को [णायव्वा] जान लेना चाहिये। [तओ पच्छा] इसके बाद अर्थात् रजोहरण पात्र बन्धन पात्राच्छादन वस्त्रादि ग्रहण करने के बाद [पुणो] फिर [आयरियाणं] आचार्य को [वंदइ] वंदना करे [नमंसइ] नमस्कार करे वंदना नमस्कार करके [पुरत्थाभिमुहे] पूर्व दिशा की ओर मुख रख कर के अथवा [गुरुणो अभिमुहे वा] गुरु के सन्मुख मुख रख कर [पंजलीउडे] दोनों हाथ जोडकर [चिट्रेइ] खडा रहे [पुणो एवं वएज्जा] ॥६२६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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