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________________ ammiccesstematun कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥६२७॥ m बादरवायुतत्पश्चात् फिर इस प्रकार गुरुको कहे [भंते] हे भगवन् आप [मम] मुझ को [सामाइयं कायानां चरित्तं] सामायिक चारित्र [पडिवजावेह] अंगीकार करावे [से आयरिए] फिर वह 'सूक्ष्म आचार्य [एवं वएज्जा] इस प्रकार कहे [देवाणुप्पिया] हे देवानुप्रिय ! [एगं] एक [नमो नाम कारणम् कारमंतं नवकार मंत्र [भणेह] पढो [तओ पच्छा] इसके पीछे [इरियावहियाए] इरि. यावही [अवरनामे] जिसका दूसरा नाम [गमणागमणे] गमनागमन है इस [आलोयणा सुत्तं] आलोचना सूत्रको [भणेह] बोलो। [तओ पच्छा] उसके बाद [तस्सुत्तरीकरणेणं] तस्योत्तरीकरण [जाव] यावत् [अप्पाणं वोसिरामि] आत्मा को वोसराता हूं यहां तकका पूरा पाठ [जहा गुरु भणावे] जैसा गुर भणावे [तहा] उस प्रकार [सीसे भणेज्जा] | शिष्य भणे [तओ पच्छा] उसके पीछे [आयरिए] आचार्य [एवं वएज्जा] इस प्रकार कहे [देवाणुप्पिया] हे देवानुप्रिय ! [चउवीसत्थएणं] चोईस लोगस्तव [झाणाओ] nil ध्यान में-मन में [भाणियबं] बोलना चाहिये [चउविसत्थएण] लोगस्तव के पाठ से ॥६२७)
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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