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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ६२४|| बंधणं वत्थ पच्चइ एवं पावठवणं वि एवं सव्वोवही वि णायव्वा । तओ पच्छा आयरियाणं वंदइ नमसइ पुरत्थाभिमु गुरुणो अभिमुहे वा पंजली उडे चिट्ठइ पुणो एवं वज्जा भंते ! मम सामाइयं चरितं पडिवज्जावेह ? से आयरिए एवं वज्जा देवाणुप्पिया ! एवं नम्मोक्कारमंतं भणेह तओ पच्छा ईरियावहिया अवरनामो गमणागमणो आलोयण सुत्तं भणेइ । तओ पच्छा तस्त्तरीकरणेणं जाव अप्पाणं वोसिरामि जहा गुरु भणावेइ तहा सीसे भणेज्जा तओ पच्छा आयारिए एवं वएज्जा देवाणुप्पिया ! चउवीस उक्कीत्तणत्थ झाओ का सग्ग करेइ चउविसत्थएणं । तओ पच्छा सीसे काउसगं णमोक्कारेण पारित्ता चउवीसत्थयं भणिज्जा तओ पच्छा सेहे एवं वदे भंते ! सामाइयं चरितं पडिज्जावेह ? आयरिए भणेज्जा हंता पडिवज्जामि ॥२४॥ HOCHI बादरवायुकायानां 'सूक्ष्म' नामकारणम् ॥६२४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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