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कल्पसूत्रे
प्रव्रजनादि विधि
सशब्दार्थे ॥६२३॥
निरूपणम्
हे भगवन् यदि मुहपत्ती वायुकायके जीवों की रक्षा के लिये है, तो सूक्ष्मवायुकाय के रक्षणार्थ है ? अथवा बादरवायुकाय के रक्षा के लिए है हे गौतम ! सूक्ष्मवायुकाय il के लिए नहीं बादरवायुकायकी रक्षा के लिये हैं जिससे छहों कायके जीवों की रक्षा
हो जाती है इस प्रकार सब अरिहंत भगवन्त कहते हैं ॥२३॥ ____ मूलम्-से केणटेणं भंते बायरवाउजीवकायाणं सुहुमंति नामधिज्जा गोयमा! अदिस्संति मंस चक्खुणा तेणटेणं गोयमा ! सुहुमंति नामधेज्जा सलिंगस्सणं मुहपत्तिं माइयाइं नामधिज्जाइं मुहपत्तिं मुहे बंधइ वाउजीवस्स रक्खणद्रं तस्सटुं मुहपत्ति अरिहंता सलिंगं भासंति मुहपत्तिं सलिंग विणयमूलधम्म | एवं सद्धिं बंधित्ता तओं पच्छा रयहरण पायकेसरियं कक्खेणं दलेइ दलइत्ता करमज्झे पायबंधणं गिण्हेइ जं वत्थं ते पायई ठवित्ता पायाइं बंधेइ तं पाय
॥६२३॥